ऐंजी

 "प्यार के पंख लगा के"

 १  एक अनोखी सी लड़की  - ऐंजी  

     गुजरात के रदय समां सौराष्ट्र में एक छोटासा गांव है हरिपुर, वहां एक लड़की रहती थी: जलनिसि, जीवनसे भरी - जाने प्रकृति देवी खुद सरस्वती देवी के साथ जमीन पर उतर आई हो ! 


    अंजनेया उसका नाम, प्यारसे सभी ऐंजी बुलाते थे। ऐंजीके पिताजी भावेशजी बचपनसे हनुमानजी का भक्त थे, इसके पैदा होने से पहले ही सोच लिया था - लड़का हुआ तो अंजनेय और लड़की हुई तो अंजनेया नाम रखेंगे।

     ऐंजीके जन्म समये ऐंजीकी माँ साधनाको कोई कॉम्प्लीकेशन्स हो गए थे। डॉक्टरों ने तो हार मान ली थी।  पर कहते है ने के जहा विज्ञान काम नहीं करता वहां आस्था काम कर जाती है। 

    भाग्यमे जो लिखा है वो कोई नहीं छीन शकता। बड़ी दुआओ और मन्नतो के बाद सही-सलामत उनका जन्म हो पाया। जिसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी उसको पडोशीयो -मित्रोकी प्रार्थनाने बचाया। 

    भावेशजी अपनी पत्नी और आनेवाली संतानको मोत के इतने करीब देखकर बहोत डर गए थे। साधनाजी के सिवाय उनके परिवार में और कोई नहीं था। शायद इसी वजहसे, ऐंजी के जन्म के बाद उन्होंने दूसरी संतान के बारे में सोचा भी नहीं। 

     ऐंजीकी माँ पास ही की गांव में टीचर थी, वो तो ग्यारह बजे घरसे निकल जाती थी तो शाम को वापस आती थी। उन्हें बच्चोको पढ़ाना और बच्चोके जीवन घडतरमे सहभागी बनाना अच्छा लगता है।

    ऐंजीके पिताजीकी अपनी खेती थी। उन्हें खुल्ले आसमानके निचे, कुदरत की बाहोंमे परिश्रम करके फसले उगाना और देशकी अन्न-खाद्य पूर्ति में हिस्सेदार बनना अच्छा लगता था। 

    ऐंजी अपने माता-पिता की एकलौती संतान होने के कारन, कोई भाई-बहन नहीं थे जिसके साथ वो खेल सके। इसी लिए ऐंजी अपना सारा वख्त अपने पिताके साथ ही बिताती थी, और ऐसा कह सकते है की ऐंजीका पिता ही उसका परम मित्र एवं आदर्श थे।  जब खेती काम चल रहा होता था , वो ऐंजीको पाठशालासे ही खेत पे साथ ले जाते थे । ऐंजीका खाना-सोना, पढाई एवं खेलना सबकुछ वही पर होता था। 

    बचपनसे ही ऐंजी एक बहोत ही नेकदिल, सेवाभावी एवं सुलजी हुई लड़की थी। पढ़ाइमे तो वो तेज थी ही, सामाजिक-व्यावहारिक सूज भी उम्र के हिसाबसे काफी अच्छी थी।  

    पाठशालामें कोई बच्चोको पढाईमें या प्रवृतिमे मदद की जरुरत हो तो सबसे पहले ऐंजी ही आगे आती थी। ऐंजी खुद मदद न कर सके तो अपने पितजीसे और कोई अध्यापकसे बिनती करके, सबका काम करवा देती थी।

    ऐंजीका स्वभाव और कुशलताकी वजहसे सारी पाठशालामें बहोत ही लोकप्रिय थी, मानो जैसे सबकी लाडली प्रिंसेस! वैसे तो सारी पाठशालाके बच्चोकी वो दोस्त थी, पर उसके सिर्फ दो ही अच्छे और सच्चे दोस्त थे: साक्षी और समीर । 

    जब भावेशका खेतीका काम बंध होता था या साधनाको पाठशालामें छुटिया होती थी तब ऐंजी साक्षी और समीर के साथ खेल सकती थी गाँवमे, ज्यादातर तो तीनो ऐंजीके घर पे ही जमा होते थे।  

    ९०' के  बच्चोके पास खेलने के लिए बहोत सारी महोल्ला रमतो थी, आजकल जैसे टेक्नोलॉजी में खोये नहीं थे। तीनो दोस्तों पढाई भी साथ करते थे, खास करके जब इम्तिहान नजदीक आती थी। समीरको गणित में मदद की जरूर पड़ती थी तो साक्षीको विज्ञान मे। ऐंजी को इतिहास पल्ले नहीं पढता था। 

    तीनो मिलके शिखते थे, जब किसीको समज न पड़े तब साधनाजीकी  मदद लेते थे। भावेशजी बच्चो के लिए नए नए नास्ते बनाके उन्हें  प्रोत्साहित करते थे। कभी कभी मध्यांतर में स्वामी विवेकानंद की प्रेरक वार्ताए सुनाते थे। 

    गर्मी की छुट्टिओमें  तीनो दोस्तों सारा दिन ऐंजी के घर ही बिताते थे, बहोत सारी मस्ती करते थे। सारा दिन खेल-कूदमें, खाना-पिनेमें और शिखने - शिखानेमें  कब निकल जाता था, पता ही नहीं चलता था। साक्षी तो कभी कभी ऐंजीके यहाँ सो भी जाती थी। 


Old Posts